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मंगलवार, 23 अप्रैल 2024

श्री हनुमानजी पूजन की प्राचीन वैदिक विधि

श्री हनुमानजी पूजन की प्राचीन वैदिक विधि

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सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार श्री हनुमानजी पूजन का कलयुग मैं अत्यंत ही महत्त्व है। श्री हनुमानजी शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले एवं फल देने वाले भगवानो में से एक हैं | यदि कोई साधक सच्ची श्रद्धा से मंगलवार के दिन श्री हनुमानजी का पूजा विधि विधान पूर्वक करे तो निःसंदेह श्री हनुमानजी शीघ्र ही साधक के समस्त कष्ट व विघ्न हर कर साधक का जीवन सुख - समृद्धि धन - धान्य से भर देते हैं।
 
पूजन प्रारम्भ करने से पूर्व निम्नवत दी जा रही आवश्यक पूजन सामग्री का संग्रह सुनिश्चित कर लें :-

• लाल कपडा/लंगोट
• जल कलश
• गंगाजल
• अक्षत ( साबुत चावल )
• लाल पुष्प
• लाल पुष्पों का हार
• पंचामृत
• जनेऊ
• सिन्दूर
• चांदी का वर्क
• भुने चने
• गुड़
• बनारसी पान का बीड़ा
• तुलसी के पत्ते
• इत्र
• सरसो का तेल
• चमेली का तेल
• घी
• दीपक
• धूप
• अगरबत्ती
• कपूर
• नारियल
• केले
 
हनुमान जी की पूजन विधि 
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यूँ तो पूजन आरम्भ विधि लम्बी है व सामान्य साधक के लिए सरल नहीं है किन्तु यहां हम पूजन विधि का सरलतम रूप प्रस्तुत कर रहे हैं।

हनुमानजी का पूजन करते समय सबसे पहले कंबल या ऊन के आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। एक घी का एवं एक सरसो के तेल का दीपक जलाये, अगरबत्ती एवं धूपबत्ती जलाये।
 
पवित्रीकरण 
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साधक बाएं हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढक लें एवं मन्त्रोच्चारण के साथ जल को सिर तथा शरीर पर छिड़क लें। पवित्रता की भावना करें।

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा ।।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्यभ्यन्तरः शुचिः ॥
ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।।
 
सकंल्प :
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पूजन प्रारम्भ करने से पूर्व सकंल्प लें। संकल्प करने से पहले हाथों में जल, पुष्प एवं अक्षत ( साबुत चावल ) लें। सकंल्प में जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस वर्ष, उस वार, तिथि उस स्थान और अपने नाम को लेकर अपनी इच्छा बोलें।
 
संकल्प का उदाहरण 
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जैसे 23/04/2024को श्री हनुमान का पूजन किया जाना है। तो इस प्रकार संकल्प लें। मैं ( अपना नाम बोलें ) ( अपना गोत्र बोलें ) भारत देश के ( पूजन के स्थान का पूरा पता बोलें ) विक्रम संवत् 2081 को, ( हिंदी मास का नाम बोलें ) के ( तिथि का नाम बोलें ) को, ( दिवस का नाम बोलें ) को, ( नक्षत्र का नाम बोलें ) में, मैं (मनोकामना बोलें ) इस मनोकामना से श्री हनुमानजी का पूजन कर रहा हूं। अब हाथों में लिए गए जल, पुष्प एवं अक्षत को जमीन पर छोड़ दें।
सर्वप्रथम गणेश जी का स्मरण करें व धूप दीप दिखाएं । कलश जी का स्मरण करें व धूप दीप दिखाएं ।
 
ध्यान :
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तत्पश्चात अपने दाहिने हाथ में अक्षत ( साबुत चावल ) व लाल पुष्प लेकर इस मंत्र से हनुमानजी का ध्यान करें -
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यं।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
 
ऊँ हनुमते नम: ध्यानार्थे पुष्पाणि सर्मपयामि।।
इसके बाद हाथ में लिए हुए अक्षत एवं पुष्प श्री हनुमानजी को अर्पित कर दें।
 
आवाह्न :
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तत्पश्चात हाथ में कुछ पुष्प लेकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए श्री हनुमानजी का आवाह्न करें -
उद्यत्कोट्यर्कसंकाशं जगत्प्रक्षोभकारकम्।
श्रीरामड्घ्रिध्याननिष्ठं सुग्रीवप्रमुखार्चितम्।।
विन्नासयन्तं नादेन राक्षसान् मारुतिं भजेत्।।
ऊँ हनुमते नम: आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।।
 
अब हाथ में लिए हुए पुष्प श्री हनुमानजी को अर्पित कर दें।
 
आसन :
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श्री हनुमानजी का आवाह्न करने के पश्चात उनको आसन अर्पित करने हेतु कमल अथवा गुलाब का लाल पुष्प अर्पित करें। आसन प्रदान करने के लिए अक्षत का भी उपयोग किया जा सकता हो | इस मंत्र का उच्चारण करते हुए श्री हनुमानजी को आसन अर्पित करें -

तप्तकांचनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम्।
अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
 
आसन अर्पित करने के पश्चात इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए श्री हनुमानजी के सम्मुख किसी बर्तन अथवा भूमि पर तीन बार जल छोड़ें।

ऊँ हनुमते नम:, पाद्यं समर्पयामि।।
अध्र्यं समर्पयामि। आचमनीयं समर्पयामि।।
 
स्नान एवं श्रृंगार :
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अब सिंदूर में चमेली का तेल मिलाकर मूर्ति पर लेप करे। लेप पाँव से शुरू कर सर तक ले जाएँ, चांदी का वर्क मूर्ति पर लगाए, अब हनुमान जी को लाल लंगोट पहनाये, इत्र छिड़के, हनुमानजी के सर पर अक्षत सहित तिलक लगाए, लाल गुलाब और माला हनुमान जी को चढ़ाये, भुने चने एवं गुड़ का नैवेद्य लगाए, नैवेद्य पर तुलसी पत्र अवश्य रखे, केले चढ़ाये, हनुमान जी को बनारसी पान का बीड़ा अर्पित करे, इसके बाद हनुमानजी को इत्र, सिंदूर, कुमकुम, अक्षत, पुष्प व पुष्प हार अर्पित करें।

श्री हनुमानजी के स्नान एवं श्रृंगार के समय "ऊँ ऐं हनुमते रामदूताय नमः" मंत्र का जप करते रहें। श्रृंगार के समय चोला चढ़ाने की विधि नीचे दी जा रही है।

हनुमान जी को चोला चढ़ाने की विधि और लाभ
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हनुमान जी को चोला चढ़ाने के लाभ
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श्री हनुमान जी को चोला चढाने से साधक को श्री हनुमान जी कृपा प्राप्त होती हैं ! ऐसा करने से श्री हनुमान जी प्रसन्न होते हैं ! हनुमान जी को चोला चढ़ाने से जातक के उपाय चल रही शनि की साढ़े साती, ढैया, दशा या अंतरदशा या राहू या केतु की दशा या अंतरदशा में हो रहे कष्ट समाप्त हो जाते हैं। साथ ही साधक के संकट और रोग दूर हो जाते हैं ! जातक की दीर्घायु होती है।

यह तो आप सब जानते है की भगवान श्री हनुमान जी भगवान शिव के ग्यारहवें रूद्र अवतार हैं ! हमारे हिन्दू धर्म में सिंदूर का महत्व बताया गया हैं ! ऐसे ही हमारे हिन्दू धर्म में की भी मान्यता हैं ! साधक श्री हनुमान जी को ख़ास कर सिंदूर का चोला चढाने से श्री राम जी की भी कृपा प्राप्त होती हैं यह आपको रामायण में वर्णित मिल जायेगा।

इस लेख को पढ़ने के बाद आप हनुमान जी चोला चढ़ाने में आगे से कोई भी गलती नही होगी। 

हनुमान जी को चोला चढ़ाने की सामग्री 
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हनुमान जी को चोला चढ़ाने के लिए श्री हनुमान जी वाला सिंदूर, गाय का घी या चमेली का तेल, शुद्ध गंगाजल मिश्रित जल, चांदी या सोने का वर्क या माली पन्ना (चमकीला कागज), धुप व् दीप , श्री हनुमान चालीसा।

चोला चढ़ाने की विधि
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हनुमान जी को चोला चढ़ाने से पहले पुराना चोला उतारकर साफ़ गंगाजल से मिश्रित जल से स्नान करना चाहिये। स्नान के बाद प्रतिमा को साफ कपड़े से पोछने के बाद सिंदूर में घी या चमेली का तेल मिलाकर गाढ़ा लेप बना ले इसके बाद सीधे हाथ से हनुमान जी के सर से आरम्भ करके सम्पूर्ण शरीर पर लेपन करें।

सावधानियां
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श्री हनुमान जी को चोला मंगलवार, शनिवार या विशेष पर्व जैसे की श्री हनुमान जंयती, रामनवमी, दीपवाली, व् होली के दिन चढ़ा सकते है ! इसके अलावा अन्य दिन चढ़ाना निषेध माना गया हैं !

श्री हनुमान जी के लिए लगाने वाला सिंदूर सवा के हिसाब से लगाना चाहिए ! जैसे की सवा पाव ,सवा किलो आदि ।

सिंदूर में मंगलवार के दिन देसी गाय का घी एवं शनिवार के दिन केवल चमेली के तेल का ही प्रयोग करना चाहिए। 

हनुमान जी को चोला चढ़ाने के समय साधक को पवित्र यानी साफ़ लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए !

श्री हनुमान जी चोला चढाते समय सिंदूर में गाय का घी या चमेली का तेल ही मिलाना चाहिए !

हनुमान जी को चोला चढ़ाने से पहले पुराने छोले को उतारा जरुर चाहिए और उसके बाद उस चोले को बहते हुए जल में बहा देना चाहिए !

श्री हनुमान जी की प्रतिमा पर चोला का लेपन अच्‍छी तरह मलकर, रगड़कर चढ़ाना चाहिए उसके बाद चांदी या सोने का वर्क चढ़ाना चाहिए !

चोला चढ़ाते समय दिए गये मंत्र का जाप करते रहना चाहिए ! 

हनुमान जी को चोला चढ़ाने का मन्त्र 
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सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये । भक्तयां दत्तं मया देव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम ।।

श्री हनुमान जी को स्त्री द्वारा चोला नही चढ़ाना चाहिए और ना ही चोला चढ़ाते समय स्त्री मंदिर में होनी चाहिए !

हनुमान जी को चोला चढ़ाने के समय साधक की श्वास प्रतिमा पर नही लगनी चाहिए !

श्री हनुमान जी को चोला सृष्टि क्रम ( पैरों से मस्तक तक चढ़ाने में देवता सौम्य रहते हैं ) में चढ़ाना चाहिए ! संहार क्रम ( मस्तक से पैरों तक चढ़ाने में देवता उग्र हो जाते हैं ) ! यदि आपको कोई मनोकामना पूरी करनी है तो पहले उग्र क्रम से चढ़ाये मनोकामना पूरी होने के बाद सोम्य क्रम में चढ़ाये ! चोला चढ़ाने के बाद हनुमान जी को लड्डू का भोग लगाकर नीचे दिए क्रम से धूप दीप के बाद क्षमा याचना करें।
 
धूप-दीप :
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अब इस मंत्र के साथ हनुमानजी को धूप-दीप दिखाएं -

साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्।।
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने।।
त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोस्तु ते।।

ऊँ हनुमते नम:, दीपं दर्शयामि।।
 
पूजन वंदन :
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इसके पश्चात एक थाली में कर्पूर एवं घी का दीपक जलाकर 11 बार श्री हनुमान चालीसा का पाठ करे व अंत में श्री हनुमानजी की आरती करें। इस प्रकार पूजन करने से हनुमानजी अति प्रसन्न होते हैं तथा साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
 
क्षमा याचना :
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श्री हनुमानजी पूजन के पश्चात अज्ञानतावश पूजन में कुछ कमी रह जाने या गलतियों के लिए भगवान् श्री हनुमानजी के सामने हाथ जोड़कर निम्नलिखित मंत्र का जप करते हुए 
क्षमा याचना करे।

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं l यत पूजितं मया देव, परिपूर्ण तदस्त्वैमेव ल
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनं l पूजा चैव न जानामि, क्षमस्व परमेश्वरं l
 
नोट👉 यदि साधक मंदिर में श्री हनुमानजी का पूजन कर रहे हों तब ऐसी स्थिति में संकल्प करने के पश्चात श्री हनुमानजी को स्नान करा उनका श्रृंगार करें। मंदिर में चूंकि समस्त देवी - देवताओं की मूर्ती उनका आवाह्न, पूर्ण प्राण प्रतिष्ठा एवं पूजन अर्चन कर ही स्थापित की जाती हैं, अतः बार बार इनका आवाह्न अथवा आसान अर्पित करने अथव प्राण प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता नहीं होती है।
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सोमवार, 22 अप्रैल 2024

यूँ ही आमों का राजा नहीं बना ‘लंगड़ा’, हर आम के पीछे है एक खास कहानी, जानिए कैसे पड़ा ये अनोखा नाम?

 यूँ ही आमों का राजा नहीं बना ‘लंगड़ा’, हर आम के पीछे है एक खास कहानी, जानिए कैसे पड़ा ये अनोखा नाम? 
फलों का राजा आम हर किसी के जुबान का राजा माना जाता है। अप्रैल महीने के दस्तक देते ही आम का सीजन भी करवट लेता है, जिसके बाद बाजारों में आम खास हो जाता है। बनारस का फेमस ‘लंगड़ा आम’ विदेशों में भी अब धूम मचाने को तैयार है। इस लंगड़े आम को GI टैगिंग मिल चुकी है लेकिन क्या आप जानते हैं कि लंगड़ा आम, ‘लंगड़ा’ क्यों कहा जाता है?
लंगड़े आम की कहानी को समझने के लिए हमें 300 साल पीछे जाना पड़ेगा, तो आइए पलटते हैं 18वीं सदी के उन पन्नों को जिस वक्त काशी नरेश का राज हुआ करता था। कहा जाता है कि काशी नरेश के राज में एक शिव मंदिर में एक साधु महाराज दो पौधे लेकर पहुंचे। यहां उनकी मुलाकात मंदिर के पुजारी से हुई। साधु ने मंदिर परिसर में ही दोनों पौधों को लगाया। वक्त बीतने के साथ ही पौधे, पेड़ में बदल गए। उसमें आम भी लग आए। साधु ने आम को तोड़कर भगवान शिव के चरणों में काटकर चढ़ाया और गुठलियों को जला दिया।
भोलेनाथ ने चखा था पहला स्वाद
साधु 4 साल तक मंदिर में यही प्रक्रिया अपनाता रहा। आम काटकर भोलेनाथ को चढ़ाता, उसके बाद प्रसाद भक्तों में बांट देता। एक दिन अचानक साधु ने पुजारी को अपने पास बुलाया और कहा कि मंदिर में आने का उसका लक्ष्य पूरा हो चुका है। अब आगे से भोलेनाथ को आम का भोग लगाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है। ध्यान रहे इसकी गुठलियां या कलम किसी के हाथ न लगे।
पुजारी ने साधु की बात का पूरा ख्याल रखा। वो कई सालों तक आम को काटकर भगवान के सामने चढ़ाता रहा और मंदिर के भक्तों को भी प्रसाद के रूप में देता रहा। लेकिन जो भी प्रसाद में आम खाता वो इसके स्वाद का दीवाना हो जाता। धीरे-धीरे पूरे बनारस में मंदिर वाले आम की चर्चा होने लगी। कई लोगों ने पुजारी से आम की गुठली मांगी ताकि वे पेड़ लगा सकें। लेकिन पुजारी ने किसी को भी गुठलियां नहीं दी। पूरे काशी में इस स्वादिष्ट प्रसाद के चर्चे होने लगे। यह बात काशी नरेश महाराजा प्रभु नारायण सिंह बहादुर तक पहुंच गई।
एक दिन पुजारी से मिलने काशी नरेश खुद मंदिर पहुंच गए। यहां उन्होंने पहले भोलेनाथ के स्वादिष्ट प्रसाद आम का स्वाद लिया। काशी नरेश ने पुजारी से आग्रह किया कि वे आम की कलम राज्य के प्रधान माली को दे दें, ताकि वो महल के बगीचे में इन्हें लगा सकें। लेकिन पुजारी को साधु की बात याद आ गई। पुजारी ने कहा कि वो भगवान शिव से प्रार्थना करेंगे और उनके निर्देश पर महल आकर आम की कलम महल के माली को दे देंगे। रात को पुजारी के सपने में भगवान शिव आए और उन्होंने आम की कलम राजा को देने के लिए कहा।
दूसरे दिन पुजारी आम के प्रसाद को लेकर राजमहल पहुंचा। उन्होंने राजा को आम की कलम भी सौंप दी। काशी नरेश ने माली के साथ जाकर बगीचे में पेड़ों की कलमें लगाईं। कुछ ही सालों में ये पेड़ बन गए। धीरे-धीरे पूरे रामनगर में आम के कई पेड़ हो गए। इसके बाद बनारस से बाहर भी आम की फसल होने लगी और अब ये देशभर में सबसे पॉपुलर आम की वैरायटी है।
तो ऐसे पड़ा आम का नाम लंगड़ा
लंगड़ा आम की कहानी तो आपको पता चल गई , लेकिन अब सोच रहे होंगे कि इसका नाम कैसे पड़ा। दरअसल, साधु ने जिस पुजारी को आम के पेड़ों का ख्याल रखने की जिम्मेदारी वो दिव्यांग था। उन्हें सब 'लंगड़ा पुजारी' के नाम से जानते थे। इसलिए आम की इस किस्म का नाम भी 'लंगड़ा आम' पड़ गया। आज भी इसे लंगड़ा आम या बनारसी लंगड़ा आम कहा जाता है।

मत इसलिए देना है ताकि हमारा देश हमारा ही रहे। अपना देश रहेगा तभी हम रहेंगे।

मत इसलिए देना है ताकि हमारा देश हमारा ही रहे, अपना देश रहेगा तभी हम रहेंगे।
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ईसा की पांचवी सदी में शाही राजा खिंगल ने अफगानिस्तान के गर्देज स्थान पर महाविनायक की प्राण प्रतिष्ठा कराई थी।

समय के साथ सभ्यता के ऊपर धूल चढ़ती गई और महाविनायक की प्रतिमा मिट्टी में कहीं दब गई।

युगों बाद खुदाई में जब वह प्रतिमा मिली तो उसे काबुल में ‘दरगाह पीर रतन नाथ’ के पास स्थापित किया गया। दरगाह पीर रतन नाथ की कहानी किसी दूसरे दिन सुनाएंगे। आज कहानी महाविनायक की।

दो वर्ष पूर्व बिहार का एक युवक अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास में नौकरी करने पहुँचा। स्वयं को यायावर कहने वाले उस युवक को अफगानिस्तान के प्राचीन महाविनायक के सम्बंध में पता था, सो वे महाविनायक के चिन्ह खोजने निकले।

पर अफगानिस्तान में सनातन के चिह्न जितने ही सुलभ हैं, उन्हें खोज लेना उतना ही दुर्लभ। कई दिनों नहीं, कई महीनों के बाद उन्हें पीर रतन नाथ दरगाह का पता चला तो वे एक दिन पहुंचे।

पहुंचे तो एक ऐसा घर मिला जिसे भारत में मंदिर नहीं कह सकते। उस मंदिर में प्रतिमा स्थापित नहीं थी, बस रामायण महाभारत और गीता आदि पुस्तकें रखी हुई थीं।

युवक ने सेवादार से जब महाविनायक की प्रतिमा के बारे में पूछा तो बुजुर्ग सेवादार आश्चर्य में डूब गया। क्या कोई दूर देश से मात्र एक प्रतिमा के लिए आया है? कौन है यह?

भावुक हो चुके सेवादार ने एक बन्द कमरे में रखी महाविनायक की प्रतिमा दिखाई…

युगों बाद किसी ने श्रद्धा से महाविनायक को देखा, युगों बाद महाविनायक की प्रतिमा ने अपने किसी श्रद्धालु को वात्सल्य की दृष्टि से देखा। उस दिन, युगों बाद किसी ने अभिशप्त महाविनायक के चरणों में प्रणाम किया, प्रतिमा पोंछी और बीस रुपये वाले माला से उनका श्रृंगार किया।

जानते हैं, ढाई हज़ार वर्ष पूर्व अफगानिस्तान के हर कण्ठ से वेदमन्त्र उच्चारित होते थे, गलियों में यज्ञध्रूम की सुगन्ध पसरी रहती थी। ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की अवधारणा को जन्म देने वाली उस पुण्य भूमि पर सौ वर्ष पूर्व तक सनातन धर्म पूरी प्रतिष्ठा के साथ खड़ा था।

पर आज का सत्य यह है कि अफगानिस्तान से महाविनायक पर लेख लिख कर जब उस युवक ने भारत भेजा तो पत्रिका के सम्पादक ने भय के मारे लेख में उनका नाम तक नहीं जोड़ा, कि कहीं उन्हें अफगानिस्तान में इसका दण्ड न भोगना पड़े।

सभ्यताओं के चिह्न कैसे मरते हैं देखेंगे?

काबुल में एक अत्यंत प्राचीन तीर्थस्थल है ‘आशा माई’। पश्तो प्रभाव के कारण वहां के लोग उस स्थान को ‘कोही आस्माई’ कहते थे, मतलब आशामाई की पहाड़ी। बीस वर्ष पूर्व सरकार ने उस पहाड़ी पर टेलीविज़न का टावर लगा दिया, लोग धीरे धीरे उस स्थान को “कोही टेलीविजन” कहने लगे। आशामाई का नाम मिट गया।

काबुल में ही एक सड़क थी, देवगनाना रोड। देवगनाना संस्कृत के ‘देवगणानाम’ का अपभ्रंश है। अब उस सड़क का नाम है, दे-अफ़ग़ान रोड। सभ्यता के चिह्न ऐसे मरते हैं।

   
देश में लोकतंत्र का महापर्व चल रहा है। मत देना हमारा कर्तव्य भी है, और हमारी आवश्यकता भी। अपने घरों से निकलिए, और मत देते समय इतना अवश्य याद रखिए कि अब हमारे पास धरती का यही एक टुकड़ा है जहाँ हम अपनी परम्पराओं को निभा सकते हैं, महाविनायक की अर्चना कर सकते हैं।

ऐसा ना हो कि सौ-पचास वर्षों बाद किसी दूसरे ललित कुमार को इसी तरह दिल्ली, आगरा, मथुरा या कानपुर में अपने चिह्न खोजने आना पड़े। यकीन मानिए 200 वर्ष पहले काबुल के हिंदुओं ने भी ऐसा नहीं सोचा होगा कि 200 वर्ष बाद हमारा कोई बच्चा जब काबुल आएगा तो उसे अपने पूर्वजों के चिह्न इस दशा में मिलेंगे। 1946 ईस्वी तक सिंध के लोगों ने यह नहीं सोचा होगा कि पचास वर्ष बाद ही उनसे उनकी संपत्ति, उनका धर्म, उनकी बेटियां, उनके बेटे सबकुछ छीन लिए जाएंगे।

हम सभ्यताओं के युद्ध में जी रहे हैं। हमको छोड़कर हर सभ्यता हमारी परम्पराओं को अपराध और हराम बताती है, और मूर्ति तथा मूर्तिपूजकों की समाप्ति को ही अपना परम् उद्देश्य मानती है। उनकी तलवार हमारी गर्दन पर है… यही है हमारा आज का सत्य।

मैं यह नहीं कह रहा कि आप फलाँ दल को वोट दीजिये। मैं क्यों कहूँ? मैं बस यह कह रहा हूँ कि मत देते समय ध्यान रखिये कि मत अपने देश के लिए देना है।


मत इसलिए देना है ताकि देश में फिर कोई हत्यारा गुरु गोविंद सिंह जी के साहिबज़ादों को दीवाल में न चुनवा सके।

मत इसलिए देना है ताकि फिर किसी बिरसा मुंडा को अपनी संस्कृति के लिए प्राण न देना पड़े।

मत इसलिए देना है ताकि फिर किसी पद्मावती को अग्नि में न उतरना पड़े।

मत इसलिए देना है ताकि अयोध्या, मथुरा, काशी, कांची, पुरी, अवंतिका बनी रहे।

मत इसलिए देना है ताकि हज़ार वर्षों बाद भी जब हमारा कोई बेटा इस मिट्टी को सूँघे तो उसे इस मिट्टी में हमारी गन्ध मिल सके।

मत इसलिए देना है ताकि हमारा देश हमारा ही रहे। अपना देश रहेगा तभी हम रहेंगे।

एकता कपूर - भारतीय संस्कृति के लिए घातक, ऐसे लोग हमारे समाज के लिए कैंसर है।

एकता कपूर

यह हमेशा महिला प्रधान, सास ननद वाली , पुरुषों को कमतर दिखाने वाली तथा बेबुनियादी धार्मिक धारावाहिक बनाती है।

धार्मिक सीरियल में यह धर्म ग्रन्थ, पोशाक तथा संवाद के साथ छेड़ - छाड़ करने क़ी कोशिश करती है।

जहाँ ना भी जरूरी हो वहाँ भी नारीसशक्तिकरण घुसेड़ने क़ी जबरदस्ती कोशिश करती है।

अरे भई तुम सास ननद वाले धारावाहिकों में महिला सशक्तिकरण दिखाओ न। किसने मना किया है...?

परन्तु धर्म ग्रन्थ में जो है वही रहने दो...।

कभी महिलाओं को धार्मिक सीरियल में रोमन कपड़े पहना देती हो तो कभी शिव तथा कृष्ण को पार्वती तथा राधा के पैर दबाते दिखाती हो।

मर्दों को नीचा दिखाने का एक भी मौका नहीं छोड़ती हो।

मैंने पूरा शिव पुराण, विष्णु पुराण, वाल्मीकि रामायण, गीता व महाभारत पढ़ा है..। कहीं भी शिव को पार्वती का, विष्णु को लक्ष्मी का या फिर कृष्ण को राधा का पैर दबाने का जिक्र नहीं है.....।

पहले के ज़माने में जब किसी महिला का पैर धोखे से भी पति को लग जाता तो वो महिला उसे पाप मानती थी।

मेरे घर में यही परम्परा आज भी है...।

फिर इसने सीरियल में आधुनिकता क्यों घुसाया?

इसने गंदी वेबसीरीज भी बनाई।

✍️ वेबसीरीज के अश्लीलता पर बवाल होने पर इसने कहा क़ी लोग ब्लू फ़िल्में देखते हैं कि नहीं?

अरे मुर्ख औरत! वेबसीरीज और पॉर्न में अंतर नहीं है।

वेबसीरीज खुले प्लेटफार्म पर मिलता है परन्तु पॉर्न नहीं।

वेबसीरीज बच्चे भी देख लेते हैं पर पॉर्न.....।

और वैसे भी यदि कोई अपनी पत्नी के साथ कमरे के भीतर संसर्ग कर रहा है तो क्या वह खुले सड़क पर भी कर लेगा...।

क्योंकि दोनों तो सम्भोग ही हुआ???

गलती इसकी नहीं गलती हमारी है जो हम इन जैसों को सिर पे चढ़ा लेते हैं।

और सबसे बड़ी गलती है सेंसर बोर्ड क़ी। और उससे बड़ी गलती हम इन अवांछित धारावाहिकों को देख कर करते हैं| यदि आज इसे लोग देखना बंद कर दे तो ये कल से बनना भी बंद हो जायेंगे |

ऐसे लोग हमारे समाज के लिए कैंसर है।



रविवार, 21 अप्रैल 2024

अपने बहुमूल्य व्यस्ततम समय मे से कुछ समय निकालकर हर दिन मोदी जी के समर्थन में पोस्ट करता हूं इसलिए नही की भाजपा समर्थक हु बल्कि इसलिए कि जब हमारे बच्चे बड़े होकर यह पूछेंगे की जब देश के सारे गद्दार भ्रस्टाचारी देशद्रोही एक होकर देशभक्त मोदीजी से लड़ रहे थे तब आप क्या कर रहे थे।🚩*

*🚩मै मोदीजी का प्रचार देशहित में कर रहा हूँ अगर किसी भी सज्जन को कोई तक़लीफ़ हो तो क्षमा करें क्योंकि अपने बहुमूल्य व्यस्ततम समय मे से कुछ समय निकालकर हर दिन मोदी जी के समर्थन में पोस्ट करता हूं इसलिए नही की भाजपा समर्थक हु बल्कि इसलिए कि जब हमारे बच्चे बड़े होकर यह पूछेंगे की जब देश के सारे गद्दार भ्रस्टाचारी देशद्रोही एक होकर देशभक्त मोदीजी से लड़ रहे थे तब आप क्या कर रहे थे।🚩*                                
*🫱🏻‍🫲🏻राष्ट्राय स्वाहा ईदम ना मम💪🏻*
कैलाश चंद्र लढ़ा 
भारत
#bjpvscongress 
#राष्ट्र 
#election2024

जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा मतदाता कुंकुम पत्रिका, निमंत्रित समस्त जिले के मतदाता 
भेज रहे हैं स्नेह निमंत्रण, मतदाता तुम्हे बुलाने को 
भूल "न" जाना, वोट डालना आने को

शुभेच्छु 
कैलाश चंद्र लढा 
जागरूक मतदाता
जागरूक नागरिक
जागरूक कट्टर हिन्दू 
जागरूक देशभक्त

#समर्पित 
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